31 October 2024

दिवाली पूजा लक्ष्मी पूजन का शुभ मुहूर्त समय 2024 Deepavali Pooja Lakshmi Pujan ka Shubh Muhurat Time 2024

🪔💥 दिवाली पूजा लक्ष्मी पूजन का शुभ मुहूर्त समय 2024 Deepavali Pooja Lakshmi Pujan ka Shubh Muhurat Time  💥🪔

lakshmi pujan ka samay 2024
Deepavali Pooja Lakshmi Pujan ka Shubh Muhurat

 Auspicious time for Lakshmi Pujan on Deepawali in other major cities of India

Laxmi Puja Muhurat in other cities

31 OCTOBER, THURSDAY

18:52 to 20:35 - Ahmedabad

18:54 to 20:33 - Pune

18:57 to 20:36 - Mumbai

18:51 to 20:34 - Nadiad

18:47 to 20:21 - Bengaluru

 

01 NOVEMBER, FRIDAY

17:36 to 18:16 - New Delhi

17:42 to 18:16 - Chennai

17:44 to 18:16 - Jaipur

17:44 to 18:16 - Hyderabad

17:37 to 18:16 - Gurugram

17:35 to 18:16 - Chandigarh

17:45 to 18:16 - Kolkata

17:35 to 18:16 - Noida

 


ॐ श्री महालक्ष्म्यै च विद्महे

विष्णु पत्न्यै च धीमहि

तन्नो लक्ष्मी: प्रचोदयात् ॥

 

शुभम करोति कल्याणम

अरोग्यम धन संपदा

शत्रु-बुद्धि विनाशायः

दीपःज्योति नमोस्तुते ॥

 

असतो मा सद्गमय।

तमसो मा ज्योतिर्गमय।

मृत्योर्मा अमृतं गमय।

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥

अनुवाद:- असत्य से सत्य की ओर

अंधकार से प्रकाश की ओर

मृत्यु से अमरता की ओर हमें ले जाओ।

ॐ शांति शांति शांति।।

 

🪔💥 आप सभी को सपरिवार दिवाली की हार्दिक शुभकामनाएँ। 💥🪔

🕉🌷 आपके जीवन को दीपावली का दीपोत्सव सुख, समृद्धि, सौहार्द, शांति तथा अपार खुशियों की रोशनी से जग-मग करें। 🚩💐

लक्ष्मी बीज मन्त्र

ॐ ह्रीं श्रीं लक्ष्मीभयो नमः॥

Om Hreem Shreem Lakshmibhayo Namah

 

ॐ श्रीं महालक्ष्म्यै नमः।।

Om Shreeng Mahalaxmaye Namah।।

 


दिवाली का पर्व सनातन हिन्दू धर्म का सर्वाधिक पवित्र तथा प्रसिद्ध त्योहार है, तथा इस पर्व को दिपावली, लक्ष्मी पूजा, अमावस्या लक्ष्मी पूजा, केदार गौरी व्रत, चोपड़ा पूजा, शारदा पूजा, बंगाल की काली पूजा, दिवाली स्नान, दिवाली देवपूजा, लक्ष्मी-गणेश पूजा तथा दिवाली पूजा के नाम से जाना जाता है। दिवाली का त्योहार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है।

         जीवन को अंधकार से प्रकाश की ओर गतिमान बनाने वाला यह त्यौहार सम्पूर्ण भारतवर्ष के साथ-साथ संपूर्ण जगत में अत्यंत उत्साह एवं धूमधाम से मनाया जाता हैं। दीपावली के त्यौहार की तैयारी प्रत्येक व्यक्ति कई दिन पूर्व ही आरंभ कर देते हैं, जिसका प्रारम्भ घर को स्वच्छ तथा पवित्र करने से किया जाता हैं, क्योंकि, दिवाली के दिवस शुभ मुहूर्त में माता लक्ष्मी की विधि-पूर्वक पूजा की जाती हैं, तथा माँ लक्ष्मीजी वही निवास करती हैं जहाँ स्वच्छता होती हैं।

         दिवाली के दिवस भगवान श्री गणेश जी तथा माता लक्ष्मी जी की पूजा करने के लिए उपयुक्त समय प्रदोष काल का माना जाता है। प्रदोष काल सूर्यास्त के पश्चात प्रारम्भ होता है तथा लगभग २ घण्टे २२ मिनट तक व्याप्त रहता है। धर्मसिंधु ग्रंथ के अनुसार श्री महालक्ष्मी पूजन हेतु शुभ समय प्रदोष काल से प्रारम्भ हो कर अर्ध-रात्रि तक व्याप्त रहने वाली अमावस्या तिथि को श्रेष्ठ माना गया है। अतः प्रदोष काल का मुहूर्त लक्ष्मी पूजा के लिए सर्वश्रेष्ठ है। अतः प्रदोष के समय व्याप्त पूर्ण अमावस्या तिथि दिवाली की पूजा के लिए विशेष महत्वपूर्ण होती है।

 

अतः हम आपको बताएंगे,

 

🪔 दिवाली की पूजा का अत्यंत शुभ मुहूर्त 2024 🪔

इस वर्ष, कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि 31 अक्तूबर, गुरुवार की दोपहर 03 बजकर 52 मिनिट से प्रारम्भ हो कर, 01 नवम्बर, शुक्रवार की साँय 06 बजकर 16 मिनिट तक व्याप्त रहेगी।

 

         इस वर्ष दिवाली के दिनांक को लेकर सभी भक्तजनों के बीच अत्यंत उलझन की स्थिति है। क्योंकि, इस वर्ष कार्तिक माह की अमावस्या दो दिन है। ऐसे में असमंजस है कि दिवाली का त्योहार 31 अक्तूबर के दिन है या 01 नवंबर के दिन। देखिये, उदयातिथि के अनुसार अधिकांश स्थान पर 01 नवंबर,  शुक्रवार के दिन दिवाली मनाई जाएगी। 01 नवम्बर, शुक्रवार के दिन सम्पूर्ण उत्तर भारत में साँय 17:46 से 20:11 तक प्रदोष काल व्याप्त रहेगा।

         साथ ही, शास्त्र में लिखा है की - न नन्दा होलिका दाहो न नंदा दीपमालिका।

जिसका अर्थ होता है की, नंदा अर्थात प्रतिपदा तिथि में न होलिका दहन होता है और न दीपोत्सव मनाया जाता है। दीपावली लक्ष्मी पूजन का पर्व कार्तिक कृष्ण अमावस्या को सूर्यास्त पश्चात प्रदोष काल में ही श्री गणेश, देवी लक्ष्मी माँ, सरस्वती माता, माँ महाकाली तथा श्री कुबेर देव आदि भगवान के पूजन करने का विशेष महत्व है। 31 अक्तूबर के दिन प्रदोष काल एवं पूर्ण रात्रि में, अमावस्या तिथि मिल रही है, जो देवी लक्ष्मी माँ का पूजन के लिए शास्त्र सम्मत व श्रेष्ठ है।

 


अतः इस वर्ष 2024 में, दिवाली पूजा का त्योहार 31 अक्तूबर, गुरुवार तथा 01 नवम्बर, शुक्रवार दोनों दिनों ही मनाया जाएगा। भारत के दक्षिणी-पश्चिमी राज्यों में 31 अक्तूबर, गुरुवार के दिन दीवाली रहेगी। तथा जोधपुर , उदयपुर, अहमदाबाद, वडोदरा, नासिक, कोल्हापुर, बैंगलोर तथा कोयंबटूर से उत्तर-पूर्व के ओर के बाकी भारत के समस्त राज्यों में 01 नवम्बर, शुक्रवार के दिन दीपावली मनाई जाएगी।

 

दोनों दिनों के पुजा के शुभ मुहूर्त इस प्रकार है।

 

31 अक्तूबर, गुरुवार की साँय 06 बजकर 55 से रात्रि 08 बजकर 41 मिनिट तक का रहेगा।

प्रदोष काल - 18:05 से 20:36

वृषभ काल - 18:57 से 20:56

 

और

 

01 नवम्बर, शुक्रवार की साँय 05 बजकर 46 से रात्रि 06 बजकर 16 मिनिट तक का रहेगा।

प्रदोष काल - 17:46 से 20:11

वृषभ काल - 18:27 से 20:19


भारत के अन्य प्रमुख शहरों में दीपावली पर लक्ष्मी पूजन का शुभ मुहूर्त

अन्य शहरों में लक्ष्मी पूजा मुहूर्त

31 अक्तूबर, गुरुवार

18:52 से 20:35 - अहमदाबाद

18:54 से 20:33 - पुणे

18:57 से 20:36 - मुम्बई

18:51 से 20:34 - नडियाद

18:47 से 20:21 - बेंगलूरु

 

01 नवम्बर, शुक्रवार

17:36 से 18:16 बजे - नई दिल्ली

17:42 से 18:16 बजे - चेन्नई

17:44 से 18:16 बजे - जयपुर

17:44 से 18:16 बजे - हैदराबाद

17:37 से 18:16 बजे - गुरुग्राम

17:35 से 18:16 बजे - चण्डीगढ़

17:45 से 18:16 बजे - कोलकाता

17:35 से 18:16 बजे - नोएडा

 

हमारे द्वारा बताए गए इस प्रदोष काल तथा स्थिर लग्न के सम्मिलित शुभ मुहूर्त में पूजा करने से धन तथा स्वास्थ्य का लाभ होता है तथा व्यक्ति के व्यापार तथा आय में अति वृद्धि होती है। ऐसा माना जाता है कि यदि स्थिर लग्न के दौरान लक्ष्मी पूजा की जाये तो माँ लक्ष्मीजी घर में सदा के लिए वास करते है। अतः लक्ष्मी पूजा के लिए यह समय सबसे उपयुक्त होता है।

 


Auspicious time for Lakshmi Pujan on Deepawali in other major cities of India

Laxmi Puja Muhurat in other cities

31 OCTOBER, THURSDAY

18:52 to 20:35 - Ahmedabad

18:54 to 20:33 - Pune

18:57 to 20:36 - Mumbai

18:51 to 20:34 - Nadiad

18:47 to 20:21 - Bengaluru

 

01 NOVEMBER, FRIDAY

17:36 to 18:16 - New Delhi

17:42 to 18:16 - Chennai

17:44 to 18:16 - Jaipur

17:44 to 18:16 - Hyderabad

17:37 to 18:16 - Gurugram

17:35 to 18:16 - Chandigarh

17:45 to 18:16 - Kolkata

17:35 to 18:16 - Noida

18 August 2024

रक्षा बंधन राखी बांधने का शुभ मुहूर्त कब है 2024 Raksha Bandhan Rakhi Bandhne ka Shubh Muhurat kab hai ?

रक्षा बंधन राखी बांधने का शुभ मुहूर्त कब है 2024 Raksha Bandhan Rakhi Bandhne ka Shubh Muhurat kab hai ? 

rakhi bandhne ka shubh muhurat kab hai 2024
Raksha Bandhan 2024 Muhurat

रक्षा बन्धन भद्रा अन्त समय - दोपहर 01 बजकर 31 मिनिट
रक्षा बन्धन भद्रा पूँछ - 09:51 से 10:53
रक्षा बन्धन भद्रा मुख - 10:53 से 12:37
 

रक्षाबन्धन मन्त्रः (Raksha Bandhan Mantra)

येन बद्धो वली राजा दानवेन्द्रो महाबलः ।
तेन त्वा रक्षबध्नामी रक्षे माचल माचल ॥
Yen Baddho bali raja danvendro mahabal,
ten twam RakshBadhnami rakshe machalmachal.
The meaning of Raksha Mantra - "I tie you with the same Raksha thread which tied the most powerful, the king of courage, the king of demons, Bali. O Raksha (Raksha Sutra), please don't move and keep fixed throughout the year."
 
येन=जिसके द्वारा  बद्धो= प्रतिबद्ध हुए, बली राजा= राजा बलि, दानवेन्द्रो=दानवों के राजामहाबल: = महाबलशाली,
तेन= उसी प्रतिबद्धता के सूत्र द्वारा  त्वाम=तुम्हे  अनुबध्नामि= मैं भी उसी रक्षा सूत्र मे बनाता हूँ, रक्षे=हे रक्षा सूत्रमा चल=स्थिर रहो  मा चल=स्थिर रहो, चलायमान मत रहो।
 
 
🌷 रक्षाबंधन 🌷
सर्वरोगोपशमनं सर्वाशुभविनाशनम् ।
सकृत्कृते नाब्दमेकं येन रक्षा कृता भवेत्।।
 
🙏🏻 इस पर्व पर धारण किया हुआ रक्षासूत्र सम्पूर्ण रोगों तथा अशुभ कार्यों का विनाशक है ।इसे वर्ष में एक बार धारण करने से वर्षभर मनुष्य रक्षित हो जाता हैं। (भविष्य पुराण)
 
🌷 Shubh Muhurat for Raksha Bandhan 2024:
In this video, we present the specific shubh muhurat for Raksha Bandhan 2024. This muhurat is considered auspicious for performing the rituals, tying the sacred thread, and exchanging gifts. Following this muhurat can add an extra layer of positivity to this already special occasion.
 
🌷 Importance of Muhurat:
Choosing the right muhurat is an age-old tradition in Hindu culture. It is believed that certain timings hold specific energies, and by aligning our actions with these timings, we can enhance the positive outcomes of our endeavors.
 

🌷 रक्षाबंधन की संस्कृत में शुभकामनाएं

 
मम भ्राता!
प्रार्थयामहे भव शतायु: ईश्वर सदा त्वाम् च रक्षतु।
पुण्य कर्मणा कीर्तिमार्जय जीवनम् तव भवतु सार्थकम् ।।
अर्थ
मेरे भैया!
प्रार्थना है की आप सौ साल जीयें, ईश्वर सदा आपकी रक्षा करें,
पुण्य कर्मों से कीर्ति अर्जित करें और इस तरह आपका जीवन सार्थक हो।
 
रक्षाबन्धनस्य हार्दिक्य: शुभकामना:।
अर्थ
रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएँ।
 
रक्षाबन्धनस्य कोटिश: शुभकामना:।
अर्थ
रक्षाबंधन की कोटि कोटि शुभकामनाएँ।
 
रक्षाबन्धनस्य अनेकश: शुभकामना:।
अर्थ
रक्षाबंधन की अनेक शुभकामनाएँ।
 
भ्राता! त्वं जीव शतं वर्धमान:।
अर्थ
भाई! तुम सौ साल जिओ।
 
भगिनी! त्वं शतं जीव शरदः वर्धमाना।
अर्थ
बहन! तुम सौ साल जिओ।
 
प्रिय भ्राता;
पश्येम शरद: शतं जीवेम शरद: शतं श्रुणुयाम शरद: शतं
प्रब्रवाम शरद: शतमदीना: स्याम शरद: शतं भूयश्च शरद: शतात् ।
रक्षाबन्धनस्य हार्दिक्य: शुभकामना:।
अर्थ
मेरे भैया,
सौ वर्षों तक आँखों का प्रकाश स्पष्ट बना रहे।
आप सौ साल तक जीते रहें; सौ साल तक आपकी बुद्धि समर्थ रहे,
आप ज्ञानी बने रहे; आप सौ साल तक बढ़ते रहें, और बढ़ते रहें;
आपको पोषण मिलता रहे; आप सौ साल तक जीते रहें
रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएँ।
  
  
रक्षाबंधन का पर्व सनातन भारतवर्ष में मनाये जाने वाले पवित्र तथा प्रमुख त्योहारों में से एक हैं। रक्षाबंधन का पर्व भाई व बहन के अतुल्य स्नेह के प्रतीक के स्वरूप में भक्ति एवं उत्साह के साथ मनाया जाता हैं, जिसमें बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती हैं साथ ही अपने भाई की दिर्ध आयु के लिए प्रार्थना करती हैं तथा भाई अपनी बहनकी रक्षा करने का वचन देता हैं। हिंदुओ में रक्षाबंधन का पर्व अत्यंत हर्षोल्लास के साथ, धूमधाम से मनाया जाता हैं। साथ ही सिख, जैन, तथा लगभग सभी भारतीय समुदायों में यह पर्व बिना किसी रुकावट के तथा प्रेम-भाव के साथ मनाया जाता हैं। रक्षाबंधन के पर्व में रक्षा सूत्र अर्थात राखीका सबसे अधिक विशेष महत्व होता हैं। माना जाता हैं की राखीबहन का अपने भाई के प्रति स्नेह व आदर का प्रतीक होती हैं। रक्षाबंधन का त्योहार सनातन हिन्दू पंचांग के अनुसार श्रावण मास के पूर्णिमा के दिन मनाया जाता हैं जो की अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार अगस्त या सितंबर के महीने में आता हैं। रक्षा बंधन के ठीक आठ दिन के पश्चात भगवान् श्री कृष्ण का जन्मदिन अर्थात श्री कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व मनाया जाता हैं।
रक्षाबंधन के शुभ दिवस पर प्रत्येक जातक को चाहिए की वह रक्षा सूत्र को भगवान शिव की प्रतिमा के समक्ष अर्पित कर 108 या उस से भी अधिक बार महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें या शिव के पंचाक्षरी तथा अत्यंत प्रभावशाली मन्त्र “ॐ नमः शिवाय” का जप करें तथा उसके पश्चात ही रक्षा सूत्र को अपने भाईयों की कलाई पर बांधे। ऐसा करने से भगवान शिव की विशेष कृपा दृष्टि प्राप्त होती हैं। क्योंकि श्रावण का पवित्र मास सम्पूर्ण प्रकार से भगवान भोलेनाथ को समर्पित होता हैं।
 

रक्षाबन्धन का शुभ मुहूर्त 2024

इस वर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि 19 अगस्त, सोमवार प्रातः 03 बजकर 04 मिनिट से प्रारम्भ हो कर, 19 अगस्त, सोमवार की ही मध्य-रात्रि 11 बजकर 55 मिनिट तक व्याप्त रहेगी।
 
अतः इस वर्ष 2024 में रक्षा-बंधन का पर्व 19 अगस्त, सोमवार के शुभ दिवस मनाया जाएगा। 
 
इस वर्ष, रक्षाबंधन के त्योहार पर राखी बांधने का सबसे शुभ मुहूर्त 19 अगस्त, सोमवार की दोपहर 01 बजकर 32 मिनिट से रात्रि 09 बजकर 11 मिनट तक का रहेगा।
 
यह भी ध्यान रहे की,
१.  हिन्दु धार्मिक मान्यताओं के अनुसार प्रत्येक शुभ कार्यों हेतु भद्रा का त्याग किया जाना चाहिये। अतः भद्रा का समय रक्षा बन्धन के लिये निषिद्ध माना गया हैं।
२.  रक्षा बन्धन के दिन अर्थात 19 अगस्त, सोमवार के दिन भद्रा, दोपहर 01 बजकर 31 मिनिट पर तक व्याप्त रहेगी, यह समय राखी बांधने के लिए उपयुक्त नहीं है।
३.  वैदिक मतानुसार अपराह्न का समय राखी बांधने के लिये सर्वाधिक उपयुक्त माना गया हैं, जो कि हिन्दु समय गणना के अनुसार दोपहर के पश्चात का समय होता हैं, अपराह्न का शुभ मुहूर्त 13:47 से 16:22 तक रहेगा।
४.  यदि अपराह्न का समय भद्रा आदि के कारण उपयुक्त नहीं हैं तो, प्रदोष काल का समय भी रक्षा बन्धन के संस्कार के लिये उपयुक्त माना गया हैं, प्रदोष काल का शुभ मुहूर्त 18:56 से 21:10।
 
 
रक्षा बन्धन भद्रा अन्त समय - दोपहर 01 बजकर 31 मिनिट
रक्षा बन्धन भद्रा पूँछ - 09:51 से 10:53
रक्षा बन्धन भद्रा मुख - 10:53 से 12:37

17 June 2024

निर्जला एकादशी कब है 2024 | एकादशी तिथि व्रत पारण का समय | तिथि व शुभ मुहूर्त | Nirjala Ekadashi 2024

🕉🌷 निर्जला एकादशी कब है 2024 | एकादशी तिथि व्रत पारण का समय | तिथि व शुभ मुहूर्त | Nirjala Ekadashi 2024🔱

nirjala ekadashi vrat kab hai 2024
Nirjala Ekadashi Vrat 

 ।। ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः ।।

        वैदिक विधान कहता है की, दशमी को एकाहार, एकादशी में निर्जल एवं निराहार तथा द्वादशी में एकाहार करना चाहिए। हिंदू पंचांग के अनुसार सम्पूर्ण वर्ष में 24 एकादशियां आती हैं। किन्तु अधिकमास की एकादशियों को मिलाकर इनकी संख्या 26 हो जाती है। भगवान को एकादशी तिथि अति प्रिय है चाहे वह कृष्ण पक्ष की हो अथवा शुकल पक्ष की। इसी कारण इस दिन व्रत करने वाले भक्तों पर प्रभु की अपार कृपा सदा बनी रहती है अतः प्रत्येक एकादशियों पर हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले भगवान विष्णु की पूजा करते हैं तथा व्रत रखते हैं। किन्तु इन सभी एकादशियों में से एक ऐसी एकादशी भी है जिसमें व्रत रखकर संपूर्ण वर्ष की सभी एकादशियों जितना पुण्य कमाया जा सकता है। यह है ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी। जिसे निर्जला एकादशी कहा जाता है। निर्जला एकादशी से सम्बन्धित पौराणिक कथा के कारण इसे पाण्डव एकादशी तथा भीमसेनी या भीम एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। पद्मपुराण के अनुसार निर्जला एकादशी व्रत के प्रभाव से जहां मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं वहीं अनेक रोगों की निवृत्ति एवं सुख सौभाग्य में वृद्घि होती है। जो श्रद्धालु वर्ष की सभी चौबीस एकादशियों का उपवास करने में सक्षम नहीं है, उन्हें केवल निर्जला एकादशी उपवास करना चाहिए क्योंकि निर्जला एकादशी उपवास करने से अन्य सभी एकादशियों का लाभ प्राप्त हो जाता हैं। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने, पूजा तथा दान करने से जातक, जीवन में सुख-समृद्धि का भोग करते हुए अंत समय में मोक्ष को प्राप्त करता है। निर्जला एकादशी का व्रत ज्येष्ठ माह में शुक्ल पक्ष के दौरान किया जाता है। अंग्रेजी कैलेण्डर के अनुसार निर्जला एकादशी का व्रत मई अथवा जून के महीने में होता है। यह व्रत सभी पापों का नाश करने वाला तथा मन में जल संरक्षण की भावना को उजागर करता है।

             एकादशी के व्रत की समाप्ती करने की विधि को पारण कहते हैं। कोई भी व्रत तब तक पूर्ण नहीं माना जाता जब तक उसका विधिवत पारण न किया जाए। एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के पश्चात पारण किया जाता है।

 


ध्यान रहे,

१.            एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना अति आवश्यक है।      

२.            यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो गयी हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के पश्चात ही होता है।

३.            द्वादशी तिथि के भीतर पारण न करना पाप करने के समान होता है।

४.            एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान भी नहीं करना चाहिए।

५.            व्रत तोड़ने के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल होता है।

६.            व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को मध्यान के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए।

७.            जो भक्तगण व्रत कर रहे हैं उन्हें व्रत समाप्त करने से पहले हरि वासर समाप्त होने की प्रतिक्षा करनी चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि होती है।

८.            यदि, कुछ कारणों की वजह से जातक प्रातःकाल पारण करने में सक्षम नहीं है, तो उसे मध्यान के पश्चात पारण करना चाहिए।

 


निर्जला एकादशी व्रत 2024

इस वर्ष ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 17 जून, सोमवार की प्रातः 04 बजकर 43 मिनिट से प्रारम्भ हो कर, 18 जून, मंगलवार की प्रातः 06 बजकर 24 मिनिट तक व्याप्त रहेगी।

 

अतः इस वर्ष 2024 में निर्जला एकादशी का व्रत 18 जून, मंगलवार के दिवस किया जाएगा।

 

इस वर्ष, निर्जला एकादशी व्रत का पारण अर्थात व्रत तोड़ने का शुभ समय, 19 जून, बुधवार की प्रातः 05 बजकर 44 मिनिट से 07 बजकर 27 मिनिट तक का रहेगा।

पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय - प्रातः 07:27

24 March 2024

होलिका दहन पूजा का कब शुभ मुहूर्त है 2024 | Holika Dahan ka Shubh Muhurat Samay Time 2024

होलिका दहन पूजा का कब शुभ मुहूर्त है 2024 | Holika Dahan ka Shubh Muhurat Samay Time 2024

holika dahan ka samay time 2024
holika dahan ka shubh muhurat 

होली हिन्दुओं के प्रमुख एवं महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक हैं, जिसे सम्पूर्ण भारतवर्ष में अत्यंत उत्साह तथा धूम-धाम के साथ मनाया जाता हैं। हिन्दु धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार, होलिका दहन को होलिका दीपक तथा छोटी होली के नाम से भी जाना जाता हैं। होलिका दहन का दिवस अर्थात फाल्गुन मास में आने वाली पूर्णिमा तिथि को फाल्गुन पूर्णिमा कहते हैं। हिन्दू धर्म में फाल्गुन पूर्णिमा का धार्मिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक महत्व अत्यंत अधिक हैं। इस दिवस सूर्योदय से प्रारम्भ कर चंद्रोदय तक व्रत-उपवास भी किया जाता हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार फाल्गुन पूर्णिमा का उपवास रखने से प्रत्येक मनुष्य के समस्त दुखों का नाश होता हैं तथा उस भक्त को भगवान श्री हरी विष्णुजी की विशेष कृपादृष्टि प्राप्त होती हैं।

सनातन हिन्दू धर्म के अनुसार होलिका दहन का मुहूर्त किसी अन्य त्यौहार के मुहूर्त से अधिक महत्वपूर्ण तथा अति आवश्यक हैं। यदि किसी अन्य त्यौहार की पूजा उपयुक्त समय पर ना की जाये तो मात्र पूजा के लाभ से वर्जित होना पड़ता हैं किन्तु होलिका दहन की पूजा यदि अनुपयुक्त समय पर हो जाये तो यह एक दुर्भाग्य तथा भारी पीड़ा का कारण बनाता हैं।

हमारे द्वारा बताया गया मुहूर्त धर्म-शास्त्रों के अनुसार निर्धारित किया हुआ श्रेष्ठ मुहूर्त हैं। यह मुहूर्त सदैव भद्रा मुख का त्याग करके निर्धारित होता हैं।

होली के पर्व को सूर्यास्त के पश्चात प्रदोष के समय, जब पूर्णिमा तिथि व्याप्त हो, तभी मनाना चाहिये। पूर्णिमा तिथि के पूर्वार्ध में भद्रा व्याप्त होती हैं, प्रत्येक शुभ कार्य भद्रा में वर्जित होते हैं। अतः इस समय होलिका पूजा तथा होलिका दहन नहीं करना चाहिये। यदि भद्रा पूँछ प्रदोष से पहले तथा मध्य रात्रि के पश्चात व्याप्त हो तो उसे होलिका दहन के लिये नहीं लिया जा सकता क्योंकि होलिका दहन का मुहूर्त सूर्यास्त तथा मध्य रात्रि के बीच ही निर्धारित किया जाता हैं।

 


होलिका दहन का शास्त्रोक्त नियम

फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से फाल्गुन पूर्णिमा तक होलाष्टक माना जाता हैं, जिसमें शुभ कार्य वर्जित रहते हैं। फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन होलिका-दहन किया जाता हैं। जिसके लिए मुख्यतः दो नियम ध्यान में रखने चाहिए -

1.   प्रथम, उस दिन भद्रान हो। भद्रा का ही एक दूसरा नाम विष्टि करण भी हैं, जो कि 11 करणो में से एक हैं। एक करण तिथि के आधे भाग के बराबर होता हैं।

2.   द्वितीय, पूर्णिमा प्रदोषकाल-व्यापिनी होनी चाहिए। सरल शब्दों में कहें तो उस दिन सूर्यास्त के पश्चात के तीन मुहूर्तों में पूर्णिमा तिथि होनी आवश्यक हैं।

 

होलिका दहन के मुहूर्त के लिए यह बातों का ध्यान अवश्य रखना चाहिये -

भद्रा रहित, प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा तिथि, होलिका दहन के लिये उत्तम मानी जाती हैं। यदि भद्रा रहित, प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा का अभाव हो परन्तु भद्रा मध्य रात्रि से पूर्व समाप्त हो जाए तो प्रदोष के पश्चात जब भद्रा समाप्त हो, तब होलिका दहन करना चाहिये। यदि भद्रा मध्य रात्रि तक व्याप्त हो, तो ऐसी परिस्थिति में भद्रा पूँछ के दौरान होलिका दहन किया जा सकता हैं। किन्तु भद्रा मुख में होलिका दहन कदाचित नहीं करना चाहिये। धर्मसिन्धु में भी इस मान्यता का समर्थन किया गया हैं। धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार भद्रा मुख में किया होली दहन अनिष्ट का स्वागत करने के जैसा हैं, जिसका परिणाम न केवल दहन करने वाले को किन्तु नगर तथा देशवासियों को भी भुगतना पड़ सकता हैं। किसी-किसी वर्ष भद्रा पूँछ प्रदोष के पश्चात तथा मध्य रात्रि के बीच व्याप्त ही नहीं होती हैं, तो ऐसी स्थिति में प्रदोष के समय होलिका दहन किया जा सकता हैं। कभी दुर्लभ स्थिति में यदि प्रदोष तथा भद्रा पूँछ दोनों में ही होलिका दहन सम्भव न हो तो प्रदोष के पश्चात होलिका दहन करना चाहिये।

 

होलिका दहन मुहूर्त 2024

इस वर्ष, फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि 24 मार्च, रविवार के दिन 09 बजकर 54 मिनिट से प्रारम्भ हो कर, 25 मार्च, सोमवार की दोपहर 12 बजकर 29 मिनिट तक व्याप्त रहेगी।

 

अतः इस वर्ष 2024 में होलिका दहन 24 मार्च, रविवार के दिन किया जाएगा।

 

इस वर्ष, होलिका दहन का शुभ समय, 24 मार्च, रविवार की रात्रि 11 बजकर 12 मिनिट से मध्य-रात्रि 12 बजकर 32 मिनिट तक का रहेगा।

भद्रा पूँछ - 18:33 से 19:53

भद्रा मुख - 19:53 से 22:06

इस वर्ष प्रदोषकाल के दौरान होलिका दहन भद्रा के साथ होगा।

 

रंगवाली होली

रंगवाली होली, जिसे धुलण्डी के नाम से भी जाना जाता हैं, वह होलिका दहन के पश्चात ही मनायी जाती हैं, जो की 25 मार्च, सोमवार के दिन आयेगी तथा इसी दिन को होली खेलने के लिये मुख्य दिन माना जाता हैं।


🎨आप सभी दर्शक-मित्र को हमारी ओर से होली की हार्दिक शुभकामनाएँ। 🌷

 


होलिका दहन का इतिहास

होली का वर्णन बहुत पहले से हमें देखने को मिलता हैं। प्राचीन विजयनगर साम्राज्य की राजधानी हम्पी में 16वीं शताब्दी का चित्र मिला हैं जिसमें होली के पर्व को उकेरा गया हैं। ऐसे ही विंध्य पर्वतों के निकट स्थित रामगढ़ में मिले एक ईसा से 300 वर्ष पुराने अभिलेख में भी इसका उल्लेख मिलता हैं। कुछ लोग मानते हैं कि इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने पूतना नामक राक्षसी का वध किया था। इसी ख़ुशी में गोपियों ने उनके साथ होली खेली थी।

 

होलिका दहन की पौराणिक कथा

पुराणों के अनुसार दानवराज हिरण्यकश्यप ने जब देखा की उसका पुत्र प्रह्लाद सिवाय विष्णु भगवान के किसी अन्य को नहीं भजता, तो वह क्रुद्ध हो उठा तथा अंततः उसने अपनी बहन होलिका को आदेश दिया की वह प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ जाए; क्योंकि होलिका को वरदान प्राप्त था कि उसे अग्नि नुक़सान नहीं पहुँचा सकती। किन्तु हुआ इसके ठीक विपरीत -- होलिका जलकर भस्म हो गयी तथा भक्त प्रह्लाद को कुछ भी नहीं हुआ। इसी घटना की याद में इस दिन होलिका दहन करने का विधान हैं। होली का पर्व संदेश देता हैं कि इसी प्रकार ईश्वर अपने अनन्य भक्तों की रक्षा के लिए सदा उपस्थित रहते हैं।

07 March 2024

महाशिवरात्रि पर शुभ मुहूर्त 2024 : दिव्यता के अद्वितीय रात्रि | Auspicious time on Mahashivratri : Unique night of divinity 2024

 ** महाशिवरात्रि पर शुभ मुहूर्त: दिव्यता के अद्वितीय रात्रि **


mahashivratri shubh muhurat
mahashivratri 2024 shubh muhurat 

महाशिवरात्रि, हिंदुओं के विशेष पर्वों में से एक है, जिसे भगवान शिव की अनुग्रह और उनकी पूजा के लिए मनाया जाता है। इस पवित्र रात्रि को और भी अधिक महत्त्वपूर्ण बनाते हैं शुभ मुहूर्त, जिनके दौरान पूजा करने से अनुमानित लाभ होता है। इस ब्लॉग में, हम महाशिवरात्रि के शुभ मुहूर्त के बारे में चर्चा करेंगे, ताकि आप इस अद्वितीय रात्रि को सबसे अच्छे तरीके से मना सकें।

** महाशिवरात्रि के महत्व **

महाशिवरात्रि को मनाने के पीछे कई महत्वपूर्ण कारण हैं। इस दिन भगवान शिव की पूजा और ध्यान का विशेष महत्त्व है। यह दिन भगवान शिव की अराधना, भक्ति और ध्यान में लगाने का सर्वोत्तम समय माना जाता है। इसके साथ ही, इस रात्रि को मनाने से व्यक्ति के मन, शरीर और आत्मा की शुद्धि होती है।

** महाशिवरात्रि के शुभ मुहूर्त **

महाशिवरात्रि के शुभ मुहूर्त का महत्व अत्यंत उच्च होता है। इसके दौरान शिव पूजा करने से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है। यहाँ हम आपको 2024 में महाशिवरात्रि के शुभ मुहूर्त की जानकारी दे रहे हैं:
महाशिवरात्रि का त्योहार इस साल 8 मार्च को मनाया जाएगा। पंचांग अनुसार महाशिवरात्रि पूजा का सबसे शुभ मुहूर्त 9 मार्च को 12:07 AM से 12:56 AM तक रहेगा।
अमृत चौघड़िया मुहूर्त : मध्य रात्रि 2 बजकर 1 मिनट से 3 बजकर 33 मिनट तक। शुभ चौघड़िया मुहूर्त : मध्यरात्रि 12 बजकर 29 मिनट से 2 बजकर 1 मिनट तक। ऐसी मान्यता है कि महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव और माता पार्वती पृथ्वी पर भ्रमण करने के लिए आते हैं।

** महत्त्वपूर्ण सूचना: **

- इन मुहूर्तों के दौरान भगवान शिव की पूजा, ध्यान, मंत्र जप और अर्चना की जा सकती है।
- पूजा के लिए शिवलिंग की स्थापना करें और उसे दूध, बेलपत्र, धातूरा, बिल्व पत्र आदि से समर्पित करें।
- योग्य मंत्रों का जाप करें और भगवान शिव की आराधना में लगे रहें।
महाशिवरात्रि के इस पवित्र पर्व पर, इन शुभ मुहूर्तों का उपयोग करके आप अपने जीवन को धार्मिक और मानवीय गुणों से संगठित कर सकते हैं। इस दिन भगवान शिव की कृपा आपके साथ रहे और आपको